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25.7.09

देख़ो आई रुत मस्तानी





देखो आई रुत मस्तानी

बादल से बरसा है पानी।

रिमझिम रिमझिम बरख़ा से लो

मिट्टी हो गई पानी- पानी।

देखो आई रुत मस्तानी।

पत्ते-पेड़ हुए हरियाले, भर गये देख़ो नदियां नाले।

धरती हो गई धानी धानी...

देखो आई रुत मस्तानी।

मेंढक ने जब शोर मचाया, मुन्ना देखो दौडा आया।

हँस हँस नाची गुडिया रानी..

देखो आई रुत मस्तानी।

बिजली चमकी बादल गरजे,रिमझिम रिमझिम बरख़ा बरसे।

आई एक तूफ़ानी॥

देखो आई रुत मस्तानी।

पपीहा पीऊ पीऊ गाता जाये,मोर अदाएं करता जाये।

करते हैं कैसी नादानी...

देखो आई रुत मस्तानी।

मैं पगली नाचुं और गाऊं, भीगुं तो ऐसे शरमाऊं।

बरखा ने दी पूरी जवानी..

देखो आई रुत मस्तानी।



4 टिप्पणियाँ:

इतना अच्छा गीत मैं कैसे गाऊँ ? क्यों की मेरे गाने में वह ओज उत्साह नहीं होगा जो इस गीत को गाते समय होना चाहिए !?
मेरे यहाँ अभी तक बारिश नहीं हुई है

sundar गीत है............... लाजवाब jhoom jhoom के गाने का मन करता है..........

rajiya ji namaskaar aap hamesha se hi samayik vishyo par likhti rahti hai bhut hibehtreen kavita sadharan shbdo me jis tarah se aap ne barish ki sundarta aur uske aane ki utsukta ko vyakt kiya hai adbhud hai mera dhynbaad swikaar kare
saadar
praveen pathik
9971969084

देखो आई रुत मस्तानी

बादल से बरसा है पानी।

रिमझिम रिमझिम बरख़ा से लो

मिट्टी हो गई पानी- पानी।

देखो आई रुत मस्तानी।


हाँ आज मैं इसे झूम कर गा सकता हूँ |शाम छः बजे के करीब झूम कर बदरा ऐसे बरसे कि पहली बार लगा कि सावन का महीना चल रहा है , आधे घंटे तो झूम के मूसलाधार बरसा इस समय भी झीसी पड़ रही हैं ,चाहे बहुत धीमी हो इस समय ९:१५ है यहाँ यह वास्तव में मौसम की पहली बारिश कह सकते हैं

रजिया जी ,
उसदिन यही कविता ललचाती कविता थी ,आज ' नाचती ,झूमती ,गाती गुनगुनाती कविता लग रही है .,धन्यवाद

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