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31.7.09

यादें !



पीछे मुड़ के हमने जब देखा, गुज़रा वो ज़माना याद आया।

बीती एक कहानी याद आई, बीता एक फ़साना याद आया।.....पीछे.


सितारों को छूने की चाहत में, हम शम्मे मुहब्बत भूल गये।(2)

जब शम्मा जली एक कोने में, हम को परवाना याद आया।.....पीछे.


शीशे के महल में रहकर हम, तो हँसना-हँसाना भूल गये।(2)

पीपल की ठंडी छाँव तले वो हॅसना-हॅसाना याद आया।.....पीछे.


दौलत ही नहीं जीने के लिये, रिश्ते भी ज़रूरी होते हैं।(2)

दौलत ना रही जब हाथों में, रिश्तों का खज़ाना याद आया।.....पीछे.


शहरों की जगमग-जगमग में, हम गीत वफ़ा के भूल गये।(2)

सागर की लहरॉ पे हमने, गाया था तराना याद आया।.....पीछे.


चलते ही रहे चलते ही रहे, मंज़िल का पता मालूम न था।(2)

वतन की वो भीगी मिट्टी का अपना वो ठिकाना याद आया।.....पीछे.


अपनों ने हमें कमज़ोर किया, बाबुल वो हमारे याद आये।(2)

कमज़ोर वो आंखों से उनको वो अपना रुलाना याद आया।.....पीछे.


अय “राज़” कलम तूं रोक यहीं, वरना हम भी रो देंगे।(2)

तेरी ये ग़ज़ल में हमको भी कोई वक़्त पुराना याद आया।.....पीछे.

1 टिप्पणियाँ:

सितारों को छूने की चाहत में, हम शम्मा-ए- मुहब्बत भूल गये।(2)

जब शम्मा जली एक कोने में, हम को परवाना याद आया।.....पीछे.


बहुत खूब , रजिया जी , मुझ पर पर भी कुछ ऐसा ही असर तारी हो गया

पीछे मुड के हमने जब देख़ा ,गुज़रा वो ज़माना याद आया।

बीती एक कहानी याद आई , बीता एक फ़साना याद आया।



मुस्सल दो बार शाया हो गयी है
हाँ दोहराव हटाने की ज़हमत करें

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