आप अपने क्षेत्र की हलचल को चित्रों और विजुअल समेत नेटप्रेस पर छपवा सकते हैं I सम्पर्क कीजिये सेल नम्बर 0 94165 57786 पर I ई-मेल akbar.khan.rana@gmail.com दि नेटप्रेस डॉट कॉम आपका अपना मंच है, इसे और बेहतर बनाने के लिए Cell.No.09416557786 तथा E-Mail: akbar.khan.rana@gmail.com पर आपके सुझाव, आलेख और काव्य आदि सादर आमंत्रित हैं I

28.6.09

बेशर्मी की इन्तहा नही तो और क्या है?

जर्मनी के ब्लैक फॉरेस्ट क्षेत्र में सिर्फ़ निर्वस्त्र लोगों के लिए पहला होटल खुलने जा रहा है। 'दि डेली टेलीग्राफ' के अनुसार होटल में आने वाले सभी अतिथियों को रिसेप्शन पर ही अपने वस्त्र छोड़ने होंगे और परिसर में नंगे रहना होगा।
ईश्वर ने मानव को शर्म के एहसास के साथ पैदा किया है, यही कारण है कि संसार में आने के बाद उसने हमेशा अपने शरीर को ढकने की कोशिश की। आरम्भिक काल में जब मनुष्य कपड़े नही बना पाया था तो उसने अपने अंगों को पत्तों और जानवरों की खाल से ढका। जर्मनी का यह वाकया बेशर्मी की इन्तहा नही तो और क्या है?

11 टिप्पणियाँ:

ज़नाब अकबर साहिब कबीरा के साथ खड़े होने का दिली शुक्रिया पर यह ' घर फूंके आपणा ' वाला है यानि कि
खुदा के होने में यकीं है पूरा ,
पर उसके न मिलने की वज़ह भी ढूंढ़ता हूँ ,
ईश्वर भी छिपता ना फिरता ,
इंसानों से आज ;
स्वर्ग से गर ' हव्वा 'संग उसे भी,
निकाला ना होता:
स्वर्ग नया हुई तब से ये धरती
जहाँ उनदोनो को ;
ज़िन्दगी क्या खूब मिली,खूब मिली ,
बहुत खूब मिली ||

और खान साहिब जिसे आप बेशर्मी की इंतिहा कह रहे हैं वह यूरोप में ' न्यूड कल्चर ' नाम का एक कल्चर है ,और तकरीबन 30 साल से ज्यादा हो गए हैं इनकी कैम्पिंग के बारे में पढ़े | यह सेक्स्सुलाईट समाज न होकर प्राकृतिक परिवेश में रहने के बारे में ज्याद रूचि रखते हैं | उस समय इनकी कैम्पिंग तम्बुओं में हुआ करती थी परन्तु वहा केवल इनके समाज के आलावा आमंत्रित लोग ही जा सकते थे | जहाँ तक मुझे याद आ रहा है यह अपने समाज को " न्यूड या नेचर कल्ट " कहा करते थे [ ठीक से याद नही है ,हृदयाघात के बाद से स्मृति -दोष सा होगया है ] | साप्ताहिक हिंदुस्तान पत्रिका के पुराने अंक और धर्मयुग ढूंढे उसमें से किसी अंक में लेख और चित्र मिलेंगे उसमें आप पाएंगे कि पूरा का पूरा परिवार एक साथ नग्न बैठा है , जिसमें भाई-बहन बाप -बेटी माँ- सभी हैं यहाँ तक शायद भावज-देवर-जेठ , जीजा साली-i तक थीं | पर ढून्ढें 20-25 साल पुराने अंकों से शुरू कर |
अगर मेरा कमेन्ट बुरा लगे तो डिलीट करने कि ज़हमत कर लीजियेगा पर पूरा और इतिमिनान से पढ़ने के बाद ही |

YAH SACH HAI............

MAINE AAJ SE 13 SAAL PAHLE AMERIKA ME AISE KAI CLUB ATHVA SAAMMJIK SANGTHAN DEKHE HAIN JAHAN PRAVESH PANE KE LIYE NAGN HONA HI PADTA HAI.....

HALANKI VE YE KAAM KOI DAIHIK BHOG K LIYE NAHIN KARTE BALKI UNKE JEENE KA TAREEKA HI YE HAI...

JAISE HAMAARE YAHAAN NAAGAA SAADHU BHI TO HAIN ,,,,,,,,,,,,,,HUM UNHEN BESHARM TO NAHI HI KAH SAKTE

AAGE .........AAP KHUD VICHAAR KAREN

mai uprokt dono mitro ki baato se bilkul sahmat nahi hun ki ye yek sanskrti balki ye kuchh chand logo ki maansik vifalta ko darsaati hai paschim me lagbhag har desh me aap ko in logo ka sangathan mil gayega ye apne aap ko prkrtivaadi kahte hai aur kapdo ki vaidhta ke khilaf hai par mitr albela ji ise sahi to nahi tharaya ja sakta fir hum me aur jaanbaro me antar kya rah jayega kal koi aur logo ka samuh muh utha kar kar kahega ki ve apni putri se hi santaan paida karna chate hai ya fir aur yaisi koi betuki aur grnit baat sayad unko samarthan karne bale hajaaro mil jaye par hum unhe sahi to nahi tharaa sakte hai vo samaaj hit me to nahi
ab rahi naga sadhuo ki baat to naga sadhuo ka jivan yekantik hota hai aur unka samajik sarokaar kuchh jayada nahi hota ( agar kuchh apvado ko chhor diya jaye)aur na hi yaha koi naga stri hoti hai [par vaha to sab ulta hota hai ve samaj me bhi rahte hai aur strio aur bachho ke sath bhi

दिगम्बरों (नेचारिस्ट) और उनकी विचारधारा के बारे में आपको कुछ और जानने की आवश्यकता है. नीचे दिए गए लिंकों पर जाकर आप इस आन्दोलन के बारे में कुछ और विस्तार से जान सकते हैं.

http://www.naturistsociety.com/faq/faq.html
http://en.wikipedia.org/wiki/Nudism

कुछ आदिवासी कबीले नग्न रहते हैं, पर उनके समाजों में बलात्कार, छेड़छाड़, यौन विकृतियाँ जैसी 'आधुनिक सभ्यता की बीमारियां' नहीं पाई जाती. वहां महिलाओं के वक्षस्थल को बच्चे को दूध पिलाने वाले अंग से ज्यादा कोई महत्त्व नहीं दिया जाता. जननांग उनके लिए वैसे ही है जैसे की नाक या कान, यानि वे सेक्स के बारे में तभी सोचते हैं जब इसकी ज़रूरत और समय होता है. इसीलिए उनका जीवन बहुत ही सहज और सरल है. जब से इन्सान ने शारीर को ढकना शुरू किया है तब से ही शायद हममें अपने शारीर के कुछ भागों के प्रति कुंठा, अपराधबोध और अतीव-आकर्षण की भावना आ गयी. आज का समाज सेक्स के प्रति सनकपन की हद तक पगलाया हुआ है.

यह 'नेचारिज्म' उस कुंठामुक्त और सहज परिवेश के बीच लौटने का प्रयास है. तुंरत प्रतिक्रिया न देकर आप इसके विषय में कुछ और जानें और कुछ-एक सप्ताह के अध्ययन-मनन के बाद एक बार फिर इसी ब्लॉग के माध्यम से अपने विचार रखें.

प्रवीण (प्रार्थी )जी ,मैंने न ही कोई आलोचना की है न ही अपना कोई अभिमत ही प्रगट किया था ,मैंने तो मेरे पास जो जानकारी थी उसे उसका स्रोत बताते हुए उपलब्ध मात्र कराई है | आप की जानकारी के लिए आप की बातों के सन्दर्भ में कुछ और भी जान लें लैटिन अमेरिकन सभ्यता में एक बहुत प्रगतिशील और समृद्ध 'रेस' [इसकी हिंदी याद नहीं आरही है ] या सभ्यता ,' इन्का' हुआ करती थी ,मिश्र [इजिप्ट] में इस्लाम के आने के बहुत पहले तक 'वंश-रक्त ' शुद्ध रखनेके लिए सगे या रक्त सम्बन्ध के भाई बहनों के मध्य विवाह सम्बन्ध सामान्य थे; यह सभी आधुनिक यूरोपीय सभ्यता से नहीं थे |
दूसरी ओर जरा वैदिक-पौराणिक कथानकों का भी अध्ययन करें अगर उन्हें स्थूल रूप में ही ग्रहण करेंगे तो खोपडी के बाल नोचना शुरू कर देंगे ' ब्रह्मा अपनी जांघ से रम्भा नामक स्त्री [अप्सरा ] को जन्म देने के कारण उसके माता पिता दोनों हुए ,परन्तु जन्म के बाद जब ब्रह्मा ने रम्भा का रूप देखा तो मोहित हो कर उससे सम्भोगातुर हो उसके पीछे-पीछे पूरी सृष्टि का चक्कर लगा डाला ,शिव-विष्णु ने किस प्रकार उन्हें नियंत्रित किया यह एक अलग कथा है ,वैसे जन मान्यता है कि ब्रह्मा के पहले पॉँच शीश थे | और दूसरी बात jan लें कि यदि समाज में किसी बात का निषेध किया गया है तो जान लें कि उस समाज में वह बात या रीत थी और उसकी विसंगतियां भी सामने आयीं तभी समाज उनके लिए निषेध-नियम बनाने को बाध्य हुआ रहा होगा ,यही "सगोत्रीय-सपिंडीय विवाहों के निषेध के नियम के साथ लागू है " ,यह होता था tabhi तो निषेध-नियम बने अभी भी बहुत से हिन्दू समाज में ही बहन कि पुत्री अर्थात भांजी से विवह का प्रथम अधिकार मामा को ही होता है , बहुत से समाज में बुआ-भतीजी एक ही घर में जेठानी -देवरानी होती है |
हरयुग की अपनी परस्थितियाँ ,आवश्यकताएं , बाध्यताएं होती हैं और उन्ही से उस युग की मान्यताएं नियंत्रित और निर्धारित होतीं है और उसी के अनुसार समाजिक और विधिक न्यायिक नियम बनाये जाते हैं जो लम्बे काल तक प्रयोग में आने के बाद परम्परा बन जातe है रीत-रिवाजों में सम्मल्लित हो जातe है ; समाज उनके पीछे की वजूहात भूल चुका होता है |

mitr anyonaasti aap ki baato me hi virodha bhash hai mai nahi samajh paa raha hun ki aap kya siddh karna chahte hai pahle too aap kahrahe hai ki mai na to alochana kar raha hun aur na hi abhimat prkat kar raha hun fir turant hi aap paschimi sabhyta ke bachaav me utar aate hai aur vo jo kar rahe hai use galat na kah kae uske bachav me aneko udaharn dene lagte hai chahe vo misr ki sabhayta se ho ya bhartiy sabhyta se saath hi aap ye bhi kah dete hai ki ye mai aap ki jaan kaari ke liye bata raha hun aap ye bhi kahate hai ki हरयुग की अपनी परस्थितियाँ ,आवश्यकताएं , बाध्यताएं होती हैं और उन्ही से उस युग की मान्यताएं नियंत्रित और निर्धारित होतीं है mujhe nahi lagta ki aaj nagge rahne ki koi paristhiti bhadyta ya avsykta hai saath hi mitr mai aap ki is baat se bhi sahmat nahi hun ki samaaj me kisi chij ka nishedh kiya gaya hai to vo samaj me khub prchlit thi kya balatkary ya hatya kabhi prchlit the jo unka nisedh kiya gaya ya fir aur yaisi kani nishedh yogy baate

प्रवीण (प्रार्थी) जी , आप का त्वरित प्रतिवाद पढ़ कर अच्छा लगा , यही बहसें तो इस मंच की उपयोगिता सिद्ध करते हुए इनको सार्थक बनाती हैं | आप मेरे कथन को पुनः पुनः अपनी प्रतिबद्धताओं को एक किनारे कर कर स्थिर-चित्त हो पढें यह आप से मेरा विनम्र अनुरोध है | आप को उसमें मैं कहीं भी अनैतिक कार्यों का पक्ष लेता नहीं मिलूँगा | मैंने केवल संस्कृतियों सभ्यताओं का उदहारण दिया है , आप रीत-रिवाजों , परम्पराओं के साथ बलात्कार जैसे असामाजिक और अनैतिक कार्य का घालमेल कर रहे हैं मेरा इशारा सामाजिक कुरीतियों मान्यताओं के विरुद्ध निषेध -नियम की बात कही है और ' खूब प्रचलित ' शब्द का कहीं प्रयोग नहीं किया है | हम आप तो बहस कर रहें कहीं आप सही होंगे कहीं मैं और कही हमदोनो सही या गलत हो सकते | पर जो पक्ष यहाँ उपस्थित ही नहीं है ,जो अपनी मान्यताओं के पक्ष में कुछ कह नहीं सकता तथा जिसके बारे में हम आप नहीं जानते उस पर बहस कैसी ? आप मेरी पहली टिप्पणीं पढियेगा , उसमें केवल श्री अकबर खान के पोस्ट शीर्षक से मुझे लगा कि उस होटल खुलने के समाचार को पाश्चात्य भोगवादी सोच का परिणाम मान रहे हैं , इसी कारण से उक्त सूचना दी थी और यह ही बता दिया लगभग ३० वर्षों पूर्व की सूचना है |
दूसरी बात के रूप में , ' मैं हर युग के बारे वाली अपनी बात पुनः कहता हूँ ' , जिस युग को हमने नहीं जिया उस युग की मान्यताओं रीत रिवाजों के बारे में हम केवल अनुमान ही लगा सकते हैं कि वह क्यों प्रचलन में आई और क्यूँ समाप्त हो गयी ,अतः आज की मान्यताओं की कसौटी उन्हें कसना ,आज के पैमाने से नापना गलत होगा इस सन्दर्भ में मैं दो रिवाजों, यथा ' मानव - बलि एवं दूसरा विवाह { सही शब्द बहु विवाह होगा } दोनों हमारी सभ्यता संस्कृति जिसे हम विश्व की प्राचीनतम मानते है से दूंगा | पहला मनवा बलि के सन्दर्भ में जान ले किसी सम्राट को जलोदर रोग हो गया बहुत उपचार कराया ,पूजा- पाठ कराया कोई लाभ नहीं हुआ तब हमारी ही हिन्दू संस्कृति जो वैदिक परम्पराओं से ही उत्पन मानी जाती है के धार्मिक पुरोहितों ने अंतिम उपाय के रूप में मानव बलि का प्राविधान किया ,सारी प्रक्रियाएं पूर्ण कर एक गरीब किसान के पुत्र को खरीद लिया गया लम्बी कथा है अन्तोगत्वा जान लें कि विश्वामित्र ऋषि ने आकर मानव बलि को रुकवा कर उसका बुरा पक्ष समाज को बताते हुए ,' विधान दिया कि भविष्य में मानव बलि की परम्परा समाप्त की जाती है ' तब से सामाजिक धार्मिक पद्धति एवं प्रक्रियाओं और मान्यताओं में मानव बलि का निषेध हुआ , यह तो दूर की बात है ; आईये बहु विवाह के सन्दर्भ में बातें करतें हैं , यह तो १९५६-५८ के मध्य तक अच्छा -खासा प्रचालन में था इसे पूर्ण सामाजिक-विधिक मान्यता प्राप्त थी | इसी काल में शारदा एक्ट भारतीय संसद द्वारा पारित कर इसे अवैधानिक/गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया | पहले तो सामाजिक रूप से इस पर तवज्जो नहीं दिया गया पर आज क्या स्थिति है आप इससे स्वयं परिचित हैं | खैर मैं अपनी तरफ से इस बहस का अंतिम रूप से समापन कर रहा हूँ , क्यूँ कि विचारणीय सन्दर्भ में मैं अपना पक्ष रखा चुका हूँ |
आप की सारी शंकाओं का समाधान इसी में है उसे सही सन्दर्भों में लें | और मेरी किसी भी बात में कहीं भी किंचित मात्र विरोध भास नहीं है , मैं पुनः कह रहा हूँ कि मैंने भी उसी प्रकार से जानकारी दी है जिस तरह अलबेलाजी ने और ab inconvenient जी ने दी है और किस कारण से दी है यह भी स्पष्ट कर चुका हूँ |
मेरी आप को एक सलाह है आप " पिटारा टूल बार [हिंदी] " डाउनलोड कर ले उसमें बड़े उपयोगी सॉफ्टवेयर्स हैं |

" मेरा इशारा सामाजिक कुरीतियों मान्यताओं के विरुद्ध निषेध -नियम की बात कही है " को इस प्रकार पढें
" मेरा इशारा सामाजिक कुरीतियों-मान्यताओं की ओर था और इनके उन्मूलन लिए इनके के विरुद्ध निषेध -नियम की बात कही थी "

[url=http://cialisnowdirect.com/#zgkdm]cialis 60 mg[/url] - buy cialis , http://cialisnowdirect.com/#yibsw buy generic cialis

[url=http://viagranowdirect.com/#ddmwh]viagra 200 mg[/url] - cheap generic viagra , http://viagranowdirect.com/#eajys buy cheap viagra

[url=http://directlenderloandirectly.com/#wckpd]direct lender payday loans[/url] - payday loans online , http://directlenderloandirectly.com/#crudp payday loans online

एक टिप्पणी भेजें